Ghadi
घड़ी
टिक-टिक चलती रहती,
दीवार पर लटकी घड़ी;
सूइयाँ इसमें तीन हैं होती,
इक छोटी, दो बड़ी।
चलती-चलती कभी-कभी ये,
हो जाती है खड़ी;
इसके रुक जाने से हमको,
होती मुसीबत बड़ी।
सैल डालते फिर चल पड़ती,
दीवार पर लटकी घड़ी;
जब तक सेल खत्म न होता,
फिर ये न होती कड़ी।
गतिशील जीवन को बनाओ,
यही सीख देने पर अड़ी।
विशाल शर्मा
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