टिक-टिक चलती रहती, दीवार पर लटकी घड़ी; सूइयाँ इसमें तीन हैं होती, इक छोटी, दो बड़ी। चलती-चलती कभी-कभी ये, हो जाती है खड़ी; इसके रुक जाने से हमको, होती मुसीबत बड़ी। सैल डालते फिर चल पड़ती, दीवार पर लटकी घड़ी; जब तक सेल खत्म न होता, फिर ये न होती कड़ी। गतिशील जीवन को बनाओ, यही सीख देने पर अड़ी। विशाल शर्मा
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