चुनाव
लुटने वाली है जनता;
आ गए चुनाव,
बढ़ने वाले हैं सारी;
चीज़ों के भाव।
पांच साल से दे रहे थे;
जिस जनता को चोट,
उसी जनता से मांगेंगे अब;
हाथ जोड़ कर वोट।
पांच साल जनता को ठग कर;
भरते हैं अपने ख़ज़ाने,
घोटालों में फंसने पर;
बनाते हैं कई बहाने।
काश ! ऐसा कोई नेता होता;
जो हमें लगता अपना,
लगता है जनता की इच्छा;
बस रह जाएगी इक सपना।
आ गए चुनाव,
बढ़ने वाले हैं सारी;
चीज़ों के भाव।
पांच साल से दे रहे थे;
जिस जनता को चोट,
उसी जनता से मांगेंगे अब;
हाथ जोड़ कर वोट।
पांच साल जनता को ठग कर;
भरते हैं अपने ख़ज़ाने,
घोटालों में फंसने पर;
बनाते हैं कई बहाने।
काश ! ऐसा कोई नेता होता;
जो हमें लगता अपना,
लगता है जनता की इच्छा;
बस रह जाएगी इक सपना।
- विशाल शर्मा